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गजानन की क्षुधा नहीं मिटी

 


गजानन की क्षुधा नहीं मिटी



पुराणों में गणेश जी के बालपन की एक दिव्य लीला वर्णित है। कथानुसार एक बार कैलाश में भगवान शिव व माता पार्वती वार्ता कर रहे थे। बालक गणेश निकट ही खेल रहे थे। तभी वहां धन-संपति, ऐश्वर्य के देवता कुबेर का पदार्पण हुआ। कुबेर ने कैलाशपति व मां पार्वती जी को प्रणाम कर उन्हें अपने महल में भोजन का निमंत्रण दिया। कुबेर के इस अग्राह पर भगवान भोलेनाथ बोले - ‘हमारे स्थान पर बालक गणपति आएंग। आप जितना चाहें, उन्हें परोसिएगा।‘

निमंत्रण स्वीकार कर गजानन कुबेर के महल में पहुंच गए। बाल गणेश से यक्षांे के राजा कुबेर बोले - ‘जितना चाहो, उतना खाओ। आज अपनी सारी क्षुधा शांत कर लो।‘




भगवान लंबोदर ने भी पूरी तत्परता से कुबेर जी के शब्दों का अक्षरशः पालन किया। उनके समक्ष विविध व्यंजन परोसे गए और वे सभी पदार्थो को ग्रहण करते गए। जितना भोजन उनके सामने आता जाता, गणपति उसे अपने उदर में समेटते जाते। 

इस प्रकार धीरे-धीरे कुबेर की रसोई का सारा अन्न समाप्त हो गया। किंतु अभी भी लीलाधारी गणेश जी की क्षुधा शांत नहीं हुई। उन्होने और भोजन की मांग की। अतिथि के इस अनुरोध को राजा कुबेर कैसे अस्वीकार कर सकते थे? अतः उन्होंने अपने कोष में रखे धन द्धारा बाहर से भोजन व खाद्य पदार्थ मंगवाने आरम्भ किए। शिव पुत्र गणेश उनको भी ग्रहण करते गए। पर आज तो जैसे भगवान गजानन की क्षुधा शांत होने का नाम ही नहीं ले रही थी। सारा भोजन समाप्त हो गया। परन्तु गणेश जी अभी भी अप्रसन्न थे। उनकी तुप्ति नहीं हो रही थी अंततः कुबेर भगवान गणपति के चरणों में गिर पड़े व क्षमा याचना करने लगे। बोले - ‘मेरे पास आपकी क्षुधा शांत करने हेतु पर्याप्त साधन नहीं है। अतः मुझे क्षमा करें।‘





तब विवेक प्रदायक भगवान गणेश के मुख से जो शब्द उच्चारित हुए, वे सम्र्पूण मानवता के लिए पथ-प्रदर्शक है। गणपति जी बोले - ‘हे कुबेर, संासरिक वस्तुएं आपकी आवश्यकता की पूर्ति तो कर सकती है। पर आपकी तृष्णा को शांत नहीं कर सकती। आपमें और मेरे पिता आशुतोष में यहीं अंतर है। आप धन-संपदा द्धारा अधिक से अधिक इच्छा पुर्ति के साधन उपलब्ध करवाते है। किंतु मेरे पिता भुख व लालसा का ही अंत कर देते है।‘

पाठकगणों! बहुत गहरा संदेश है। जितना अपनी भूख को तृप्त करने का प्रयास करोगे, उतनी लालसाएं बढ़ती जाएंगी। इसलिए अध्यात्म की ओर उन्मुख होकर अपनी क्षुधा को कम और पूणर््ातः समाप्त करने का प्रयास करना ही कल्याणकारी है। आज जहां समाज मंे प्रचलित अनेक पत्र-पत्रिकाएं और फिल्म नए-नए उकसाते विज्ञापनों द्धारा मानव को भोग-पदार्थो की और अधिक प्रेरित करती है -  वहीं धार्मिक पत्रिकाएं का प्रयास करती रहती है कि भोग-विलासों व विकारों की अग्नि को शांत करने की प्रेरणा दे। 








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